I
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أخماتوفا عاشت في زمنين.
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و لم يكن لائقاً البكاءُ عليها.
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لا يُصدّق، أنها كانت تعيش،
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لا يُصدّق، أنها غادرتنا.
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لقد رحلتْ، كما الأغنيةُ
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ترحلُ إلى عمق ِ حديقةٍ راحتْ تُظْلِم.
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لقد رحلت، كما لو إلى الأبدِ عادتْ
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من لينينغراد إلى بطرسبورغ.
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لقد ربطت بين هذه الأزمنة
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في مركز غائمٍ مُظَلَّلٍ.
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فإذا كان بوشكين – الشمس،
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فإنها ستكون في الشعر – ليلةً بيضاء.
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كانتْ مستلقيةً فوقَ الموتِ
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و فوق الخلود،
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خارجَ كل شيء، كما لو عَرَضاً
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ليس في الواقع، بل عليه،
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كانت مستلقية بين الحاضر و الماضي.
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و الماضي سار بقرب التابوت بخشوع
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لا على شكل رتلٍ من السيدات المؤمنات.
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إذ راحت الكشش الشيب تتلألأ
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من تحت القبعات القديمة الطراز
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بكل الضياء و الفخر.
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و مشى المُستَقبلُ، ضعيفاً في الكتفين.
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و مشى الأولاد. كانوا يحرقون أنفسهم
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بلهيب مدرسيٍّ في العيون
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و قد مسكوا الدفاتر في قبضاتهم بقوة.
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و الفتيات الصغيرات حمِلن،
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على الأرجح، في حقائبهن
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دفاتر يوميات و لوائح.
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إنهن ذاتهن – الطاهرات و السعيدات –
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التلميذات الروسيات الساذجات.
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و أنت – أيها الانحلال الكوني،
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لا تقض ِ على رابطة الزمن تلك –
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فإنها سوف تساعد فيما بعد.
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إذ ببساطة لا يمكن أن يكون هناك اثنتين
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من روسيا،
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كما لا يمكن أن يكون هناك اثنتين
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من أخماتوفا.
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II
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و لكن، ليس بعيداً، في تابوت ثانٍ،
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كما لو أنها أغنيةٌ شعبيةٌ بجانبِ الإنجيل،
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كانت مستلقية في منديلٍ أبيض بسيط
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عجوزٌ من عمْرِ أخماتوفا.
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كانت مستلقية، كما لو أنها تستعد للإكليل،
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و قد أرهَقَها الغسيل، و الكَنْسُ و الهَرْشُ،
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و رَفْأُ الثياب،
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فلاحةٌ بحَسَبِ اليدين و بحسب الوجه،
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و ستُّ بيتٍ، على العموم، يُفْتَرض أن تكون.
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أن تكونَ ميتةً – إنها حياةُ النعيم.
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كمْ أحْسَنَ الناسُ الاهتمام بها،
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و كما لو أنها طفلٌ قبل العيد بالضبط،
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قاموا بغسلها و ألبسوها ثياباً نظيفة.
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كانت واضحةً في وداعها
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و قد ضمَّتْ إلى صدرها بإجلال
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يدين جافتين، كما لو أنها كانت
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تُمْسِكُ بهما شمعةً خفية.
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و رحتُ أفكرُ : لربما، فجأة،
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قد يكون هناك مع ذلك " روسييَنْ ":
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روسيا الروح و روسيا اليدين –
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بلدَين مختلفين و غريبين تماماً؟
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لم يتفجع أحد على تلك العجوز.
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لم يضعْها أحد على قائمة الخالدين.
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و كان فوقها أبيضَ كما لو من بعيد
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منظرٌ جانبي أخماتوفيٌّ نبيل.
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أخماتوفا كانت تستلقي بجفاء و بازدراء
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أعلى من جميع أصناف المديح،
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و هي تدرك مقامها الروحي
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على الادعاء و الدهماء الروحييَنْ.
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أرستقراطية ؟ كلها من هناك، حيث
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كانت الأرصفة تُضرَبُ تحت حوافر الجياد!
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و لكن اليدين و هي ترتمي على الأزهار،
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كانتا تهتزان، كما على الماء،
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و تمنحان شيئاً ما.
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لقد أبدعتا الخير كما استطاعتا.
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لكن القوى كانت أحياناً غير كافية،
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و الريشة، الخفيفة بالنسبة لبوشكين،
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طالما كسرت الأصابع النسائية
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مع ابتسامة ساخرة.
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مليكة بلا تاج أو صولجان
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وسط المواهب الباهتة من حيث الاحترام،
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لقد كانت واضحة عند الوداع،
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كما تلك العجوز في ذلك البابوج الهدية!
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ترجمة: ابراهيم استنبولي
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ابراهيم استنبولي
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يفغيني يفتوشينكو
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إلى آنا أخماتوفا | يفغيني الكساندروفيتش يفتوشينكو / Yevgeny Aleksandr
Written By هشام الصباحي on الخميس، 15 يناير 2015 | يناير 15, 2015
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