عمودية أنا
| |
لكن بودّي لو كنتُ افقية.
| |
لستُ شجرة جذورها في الأرض،
| |
امتصّ الأملاح المعدنية والحبّ الأمومي
| |
لكي تلمع أوراقي كلما حلّ آذار.
| |
ولا أنا جمال حوض من الزهر
| |
بألواني الرائعة التي تستدرّ الآهات
| |
جاهلة أنّي سأفقد بتلاتي قريبا.
| |
مقارنة بي، الشجرة خالدة
| |
واكليل الزهرة، وإن لم يكن أعلى، لكنه أكثر فتـنة،
| |
وإني أريد حياة الأولى الطويلة وجرأة الثاني.
| |
هذه الليلة، في ضوء النجوم الشديد الخفوت،
| |
ضوّعت الأشجار والزهور عطورها الباردة.
| |
أمرّ بينها، لكنها لا تلتـفت.
| |
أحيانا أظن أني أثناء نومي
| |
لا بدّ أشبهها تماما-
| |
أفكارٌ يلتهمها الظلام.
| |
من الطبيعي أكثر ان اكون ممدّة
| |
هكذا ندخل السماء وأنا في حوار مباشر.
| |
وكم مفيدة سأكون يوم أتمدّد الى الأبد:
| |
آنذاك قد تلمسني الأشجار أخيرا
| |
وستمنحني الزهور بعضا من وقتها.
| |
*
| |
ترجمة: جمانة حداد
|
عموديةٌ أنا | سيلفيا بلاث / Sylvia Plath
Written By هشام الصباحي on الجمعة، 24 أبريل 2015 | أبريل 24, 2015
0 التعليقات