أفقتُ على الجفاف وكانت السراخس ميتة،
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النباتات التي في القدور الفخارية صفراء كالذرة؛
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امرأتي رحلت
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والزجاجات الفارغة تحاصرني، كجثث مدمّاة،
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بلاجدواها؛
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كانت الشمس لا تزال تسطع مع ذلك
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وملحوظة صاحبة البيت تكسّرت في اصفرار مناسب
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غير متطلّب؛ أكثر ما كنت بحاجة اليه وقتذاك
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كوميدي جيد، من الأسلوب القديم، مهرّج
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يحمل نكاتاً على ألم مجرّد؛ الألم مجرّد
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لأنه موجود، لا أكثر؛
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حلقتُ، بشفرة قديمة، وبحذر
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ذقن الرجل الذي كان يافعاً ذات مرة وقيل
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إنه عبقري؛
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لكنها مأساة العشب،
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السراخس الميتة، النباتات الميتة؛
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وعبرتُ الردهة المعتمة
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حيث تقف صاحبة البيت
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لاعنةً ومرسلة إياي، أخيراً،
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إلى الجحيم،
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ملوّحة بذراعيها السمينتين المعرّقتين
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وصارخة
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صارخة تطالب بالإيجار
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لأن العالم خذلنا
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نحن الإثنين.
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ترجمة: سامر أبو هواش
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مأساة العشب | تشارلز بوكوفسكي
Written By هشام الصباحي on الاثنين، 6 أبريل 2015 | أبريل 06, 2015
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