حيث السمكات الموشّاة | |
تهبطُ لولبيّاً، | |
حيث الأوراق المعقودة | |
ترتفع إلى الشفة | |
الضيقة والزهور | |
الزاهية تزهر: | |
ذكّرني ثانية | |
كيف فتحت | |
العلبة ورفعتك | |
إلى نظر زوجي الجديد، | |
كيف وضعناك | |
بين الهدايا الأخرى. | |
أتذكّر دائماً | |
رجلاً يرمي ثياباً | |
في حقيبة، | |
امرأة | |
تتأرجح واضعة | |
رأسها بين ركبتيها. | |
إنهما يفعلان ذلك | |
باستمرار، شكلان صغيران | |
خلف زجاج سميك | |
يحول دون أن أصل إليهما، | |
وأن أطلب إليهما الكفّ عن ذلك | |
وأن يدعاني وشأني | |
خفيفة ووحيدة من جديد. | |
لذا أخبرني أرجوك | |
كيف جرت الأمور: فتحتُ | |
العلبة الضائعة | |
ورفعتك. وضعناك | |
على المستوقَد كشاهد. | |
أخبرني مرة بعد | |
قصة الزواج | |
وكيف كان لنا أن نجعله رائعاً. | |
* | |
ترجمة:سامر أبوهواش |
الإناء | كيم أدونيزيو Kim Addonizio
Written By هشام الصباحي on الخميس، 5 نوفمبر 2015 | نوفمبر 05, 2015
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