هذه نهاية الشتاء، القصائد تزهر | |
وتصبح براعمها ثقيلة | |
يصبح قلبي أكثر بساطة | |
سأسدي له خدمة بالتحدث عن الحب | |
كما لو كان موجودا معه | |
نهر يستعيد شكله العادي | |
أضع أسراري في الهضبة المألوفة وأقول للحصان بأنه سيجد في أنيتي | |
عشبا ضبا ومكانا يقفز عليه | |
كل جملة تشبه الحديقة التي عرفتها | |
عليّ أن أشارك في الفصل الجميل | |
باذلاً كل جهد | |
تسهم هذه الصفحة بسعادتها | |
بموسيقاها السامية | |
أريد دون مواربة أن أبقي | |
علي سطحي مثل لازورد يحطّ علي قش السقوف | |
كلمة عزيزة تحضنني وتظنني ساكنا | |
جسدي مجهول وروحي عادية في | |
أول أبريل | |
لا تتوجعي أيتها لقصيدة | |
وأثملي الأرض | |
بهذه الهدية الحاذقة | |
النسيان | |
نسيت جلدي، نسيت جسدي | |
نسيت هيكلي الذي ينحني | |
نسيت القرن والديكور | |
والصحيفة الرمادية والليالي البيض | |
نسيت الحق والواجب | |
والفرد والجمهورية | |
نسيت الشارع والصاخبة | |
ومكيدة الموسيقي | |
نسيت الخبر، نسيت الحب | |
نسيت أختي، والزوجة السعيدة | |
والطريق إلي الغابة | |
نسيت بأن كبريائي يأكلني | |
وإن عطشي قد توقف أمام النافورة المجنونة | |
التي تطيع كلامي | |
نسيت بأني | |
نسيت بأني لم أكن بمستوي مأزقي | |
ولا أحفظ أمام العيون | |
ولا أمام العدم إلا هذه القصيدة | |
هذا المطلق | |
والصرخة أمام الفضاء. | |
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ترجمة علي بدر |
ربيع | آلان بوسكيه Alain Bosquet | ترجمة علي بدر
Written By هشام الصباحي on الأربعاء، 16 سبتمبر 2015 | سبتمبر 16, 2015
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