1ـ ترتيلة | |
ليس هناك أحد بينك وبيني. | |
ولا نبات يمتصّ نُسغاً من أعماق الأرض. | |
ولا حيوان، لا إنسان، | |
لا ريح تمحى بين الحُب. | |
أجمل الأجساد مثل زجاج شفاف. | |
أقوى الآلهة مثل ماء يغسل أقدام المسافرين المتعبة. | |
أشدّ الأشجار خضرة مثل قصدير مُبرعم في عتمة الليل. | |
الحبّ رمال تبتلعها شفاه عطشى. | |
الكراهية قدح ملحي يُقدّم للعطاشى. | |
تدفقي، أيتها الأنهار، ارفعي أيديك، | |
أيتها المدن! أنا، ابن مخلص للأرض السوداء، سوف | |
أعود الى الأرض السوداء. | |
كما لو كانت حياتي لم توجد، | |
كما لو كان قلبي، لو كان دمي، | |
لو كانت إدامتي | |
لم تخلق كلمات وأغاني | |
لكن صوتاً مجهولاً، غير شخصي، | |
بل الأمواج المتدافعة فقط، جوقة الرياح فقط | |
والتمايل الخريفي | |
للأشجار الفارعة. | |
ليس هناك أحد بينك وبيني | |
وقد أُعطيتُ القوة | |
2 ـ ترتيلة | |
لا أحد هناك بينك وبيني | |
وقد أُعطيتُ القوة. | |
جبال بيض ترعى على سهول برية، | |
الى البحر تذهب، مكان سقيها، | |
جديد وجديد، شموس تتكئ على | |
واد لنهر صغير داكن حيث وُلدت. | |
ليس لدي حكمة، ولا مهارات، ولا إيمان | |
لكنني أتلقّى قوة، إنها تقسم العالم نصفين. | |
سوف أخوض، موجة ثقيلة، على شواطئه | |
وسوف تغطي أثري موجة صغيرة. آه أيتها الظلمة! | |
التي خضّبها بريق السحر الأول، | |
مثل رئة انتزعت من صدر مشقوق، | |
إنّك تتأرجحين، إنك تغوصين. | |
كما مرّات عديدة طفوت معك، | |
مثبّتاً في منتصف الليل، | |
سامعاً صوتاً ما فوق كنيستك التي اعتراها الرعب، | |
صيحة طائر، حفيف المرج كان يطوفان داخلك | |
ولمعت تفاحتان على المائدة | |
أو تلألأ مقصّ مفتوح ـ | |
وكنا متشابهين: | |
تفاحتان، ومقصّ، وظلمة وأنا | |
تحت نفس القمر غير المتحرّك | |
الآشوري، والمصري، والروماني. | |
3 ـ ترتيلة | |
الفصول تأتي وتذهب، الرجال والنساء يتعاشرون | |
الأطفال شبه نائمين يمدون أيديهم عبر الحائط | |
ويرسمون أراضي بإصبع مبتلة باللعاب. | |
الأشكال تأتي وتروح، وما يبدو منيعاً يتداعى. | |
لكن وسط الدول البازغة من البحر، | |
وسط الشوارع المهدومة حيث ذات يوم | |
سوف تحدق جبال صُنعت من فلك هاو، | |
في ظلّ ما مضى، وما سوف يمضي | |
يدافع الشبان عن أنفسهم، زاهدين مثل غبار الشمس، | |
لا يحبّون الخير ولا الشر، | |
الجميع قُذفوا تحت قدميك الضخمتين | |
حتى يمكنك أن تسحقها، حتى يمكن أن تدوسها، | |
حتى يحرّك نفسك العجلة | |
وتهتزّ بنية هشّة بالحركة، | |
وحتى تعطيها الجوع، والآخرين نبيذاً، وملحاً، وخبزاً. | |
صوت البوق ما زال لا يُسمع | |
إذ ينادي المشتّتين، أولئك الذين يرقدون في الوديان. | |
على الأرض المتجمّدة حيث لا هدير بعد للعربة الأخيرة. | |
ليس هناك أحد بينك وبيني. | |
باريس 1935 | |
من (ثلاثة شتاءات) | |
* | |
ترجمة: أحمد مرسي |
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ترتيلة | تشيسلاف ميلوش
Written By Lyly on السبت، 16 مايو 2015 | مايو 16, 2015
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